स्पोंडिलोसिस या स्पॉन्डिलाइटिस, आर्थराइटिस का ही एक रूप है। यह समस्या मुख्यत: मेरु दंड (Spine) को प्रभावित करती है।

स्पोंडिलोसिस मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोत्तरी और वर्टेब (Vertebrates) के बीच के कुशन (इंटरवर्टेबल डिस्क) में कैल्शियम के डी-जेनरेशन, बहिःक्षेपण और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है।

स्पॉन्डिलाइटिस के प्रकार (Types of Spondylosis)


शरीर के विभिन्न भागों को प्रभावित करने के आधार पर स्पॉन्डिलाइटिस तीन प्रकार का होता है:
सरवाइकल स्पोंडिलोसिस (Cervical Spondylosis): गर्दन में दर्द, जो सरवाइकल को प्रभावित करता है, सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस कहलाता है। यह दर्द गर्दन के निचले हिस्से, दोनों कंधों, कॉलर बोन और कंधों के जोड़ तक पहुंच जाता है। इससे गर्दन घुमाने में परेशानी होती है और कमजोर मांसपेशियों के कारण बांहों को हिलाना भी मुश्किल होता है।


लम्बर स्पोंडिलोसिस (Lumbar Spondylosis): इसमें स्पाइन के कमर के निचले हिस्से में दर्द होता है।


एंकायलूजिंग स्पोंडिलोसिस (Ankylosing Spondylosis): यह बीमारी जोड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करती है। रीढ़ की हड्डी के अलावा कंधों और कूल्हों के जोड़ इससे प्रभावित होते हैं। एंकायलूजिंग स्पोंडिलोसिस होने पर स्पाइन, घुटने, एड़ियां, कूल्हे, कंधे, गर्दन और जबड़े कड़े हो जाते हैं।

स्पॉन्डिलाइटिस की समस्या (Facts of Spondylosis)


आमतौर पर इसके शिकार 40 की उम्र पार कर चुके पुरुष और महिलाएं होती हैं। आज की जीवनशैली में बदलाव के कारण युवावस्था में ही लोग स्पॉन्डिलाइटिस जैसी समस्याओं के शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का सबसे प्रमुख कारण गलत पॉश्चर है, जिससे मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है। इसके अलावा शरीर में कैल्शियम की कमी दूसरा महत्वपूर्ण कारण है।
एक सर्वे के अनुसार हर सप्ताह स्पॉन्डिलाइटिस के 20 नये मामले आते हैं, जिनमें मरीज की उम्र 30 से कम होती है। एक दशक पहले के आंकड़ों से तुलना करें तो यह संख्या तीन गुनी हुई है। वे युवा ज्यादा परेशान मिलते हैं, जो आईटी इंडस्ट्री या बीपीओ में काम करते हैं या जो लोग कम्प्यूटर के सामने अधिक समय बिताते हैं।
एक अनुमान के अनुसार हमारे देश का हर सातवाँ व्यक्ति गर्दन और पीठ दर्द या जोड़ों के दर्द से परेशान है।

स्पोंडिलोसिस के लक्षण


1 .अगर स्पाइनल कोर्ड दब गई है तो ब्लेडर (Bladder) या बाउल (Bowl) पर नियंत्रण खत्म हो सकता है।
2.इस रोग का दर्द हाथ की उंगलियों से सिर तक हो सकता है।
3 .उंगलियां सुन्न हो जाती हैं।
4 .कंधे, कमर के निचले हिस्से और पैरों के ऊपरी हिस्से में कमजोरी और कड़ापन आ जाता है।
5 .कभी-कभी छाती में दर्द हो सकता है।
6 .कशेरुकाओं (Vertebra) के बीच की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है।
7 .गर्दन से कंधों और वहां से होता हुआ यह दर्द हाथों, सिर के निचले हिस्से और पीठ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच सकता है।
8 .छींकना, खांसना और गर्दन की दूसरी गतिविधियां इन लक्षणों को और गंभीर बना सकती हैं।
9 .दर्द के अलावा संवेदन शून्यता और कमजोरी महसूस हो सकती है।
10 .शारीरिक संतुलन गड़बड़ा सकता है।
11 .सबसे पहले दिखाई देने वाले लक्षणों में से एक गर्दन या पीठ में दर्द और उनका कड़ा हो जाना है।
12 .समय बीतने के साथ दर्द का गंभीर हो जाना।
13 .स्पोंडिलोसिस की समस्या होने पर यह सिर्फ जोड़ो तक ही सीमित नहीं रहती। समस्या गंभीर होने पर बुखार, थकान, उल्टी होना, चक्कर आना और भूख की कमी जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।


स्पोंडिलोसिस के कारण (Spondylosis Causes)


स्पोंडिलोसिस कई कारणों से होता है। कई बार जोड़ों में दर्द का कारण बनने वाले स्पोंडिलोसिस आनुवांशिक भी होती है लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं होता। स्पोंडिलोसिस के कुछ सामान्य कारण निम्न हैं:

1 .आनुवंशिक कारण
2 .उम्र का बढ़ना
3 .भोजन में पोषक तत्वों, कैल्शियम और विटामिन डी की कमी के कारण हड्डियों का कमजोर हो जाना
4 .बैठने या खड़े रहने का गलत तरीका
5 .लंबे समय तक ड्राइविंग करना
6 .शारीरिक श्रम का अभाव
7 .मसालेदार ठंडी या बासी चीजों को खाना
8 .विलासिता पूर्ण जीवनशैली
9 .महिलाओं में लगातार माहवारी का असंतुलन
10 .उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों में क्षय या विकार पैदा होना
11 .अक्सर फ्रैक्चर के बाद भी हड्डियों में क्षय की स्थिति होने लगती है।


स्पोंडिलोसिस का इलाज (Treatment of Spondylosis)


खाने में कैल्शियम और विटामीन डी को शामिल कर काफी हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही स्पोंडिलोसिस से बचने के लिए अपने चलने और बैठने के तरीके पर भी ध्यान देना जरूरी है। कुछ अन्य सावधानियां और उपाय निम्न हैं:
1 .जीवनशैली में बदलाव लाएं।
2 .पौष्टिक भोजन खाएं, विशेषकर ऐसा भोजन जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो।
3 .चाय और कैफीन का सेवन कम करें।
4 .पैदल चलने की कोशिश करें। इससे बोन मास (Bone Mass) बढ़ता है। शारीरिक रूप से सक्रिय (Active) रहें।
5 .नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
6 .हमेशा आरामदायक बिस्तर पर सोएं। इस बात का ध्यान रखें कि बिस्तर न तो बहुत सख्त हो और न ही बहुत नर्म।
7 .स्पोंडिलोसिस से पीड़ित लोग गर्दन के नीचे बड़ा तकिया न रखें। उन्हें पैरों के नीचे भी तकिया नहीं रखना चाहिए।
8 .ऐसी मेज और कुर्सी का प्रयोग करें, जिन पर आपको झुक कर न बैठना पड़े। हमेशा कमर सीधी करके बैठें।
9 .धूम्रपान न करें और तंबाकू न चबाएं।

बांहों की मांसपेशियों से लेकर हाथों की उंगलियों तक में दर्द की संवेदनशीलता महसूस की जाती है। 60 के बाद यह किसी को भी हो सकता है। हालांकि खराब जीवनशैली, बैठने-खड़ा होने के गलत पोस्चर और अनुवांशिक कारणों से यह कभी भी अटैक कर सकता है। आइए जानते हैं स्पांडलाइसिस से लड़ने के घरेलू इलाज।


नियमित व्यायाम (Regular Exercise)
अगर आप नियमित रुप से गर्दन और बांह की कसरत करते रहें तो स्पांडलाइसिस के दर्द से आऱाम मिलेगा। अपने सिर को दाएं-बांए और उपर-नीचे घुमाते रहें। अपने गर्दन को दाएं और बांए कंधे पर बारी-बारी से झुकाएं। दस मिनट तक यह व्यायाम रोजाना 2 से 3 बार करें। काफी आराम मिलेगा। आप हल्के एरोबिक्स जैसे स्वीमिंग भी आधे घंटे तक रोज कर सकते हैं, इससे गर्दन की स्पांडलाइसिस में आराम मिलेगा।


गर्म और ठंडे पानी की पट्टी (Hot and cold compress)
गर्दन के प्रभावित क्षेत्र जहां दर्द हो और कड़ापन महसूस होता हो वहां पहले गर्म पानी और बाद में ठंडे पानी की पट्टी से दबाव डालें। गर्म पानी की पट्टी से ब्लड सर्कुलेशन तेज होगा और मांसपेशियों का खिंचाव कम होगा और दर्द से राहत मिलेगी। ठंडे पानी का पट्टी से सूजन कम होगा। गर्म पानी की पट्टी 2 से 3 मिनट तक रखें और ठंडे पानी की पट्टी 1 मिनट। इसे 15 मिनट पर दोबारा करें।


सेंधा नमक की पट्टी या स्नान (Epsom salt bath)
नियमित रुप से सेंधा नमक की पट्टी या इससे स्नान करने से स्पांडलाइसिस के दर्द में काफी आराम मिलता है। सेंधा नमक में मैग्नीशियम की मात्रा ज्यादा होने से यह शरीर के पीएच स्तर को नियंत्रित करता है और गर्दन की अकड़ और कड़ेपन को कम करता है। आधे ग्लास पानी में दो चम्मच सेंधा नमक मिला कर पेस्ट बना लें और उसे गर्दन के प्रभावित क्षेत्र में लगाएं, थोड़ी देर के बाद काफी राहत मिलेगी। या गुनगुने पानी में दो कप सेंधा नमक डाल कर रोजाना स्नान करें, काफी फायदा मिलेगा।


लहसुन (Garlic)
लहसुन में दर्द निवारक गुण होता है और यह सूजन को भी कम करता है। सुबह खाली पेट पानी के साथ कच्चा लहसुन नियमित खाएं, काफी फायदा होगा। तेल में लहसुन को पका कर गर्दन में मालिश भी किया जा सकता है, इससे दर्द में काफी राहत मिलेगी।


हल्दी (Turmeric)
हल्दी असहनीय दर्द को चूसने में सबसे कारगर साबित हुई है। इतना ही नहीं यह मांसपेशियों के खिचांव को भी ठीक करता है। एक ग्लास गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी डाल कर पीएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।


तिल के बीज (Sesame Seeds)
तिल में कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, विटामिन के और डी काफी मात्रा में पाई जाती है जो हमारे हड्डी और मांसपेशियों के सेहत के लिए काफी जरुरी है। स्पांडलाइसिस के दर्द में भी तिल काफी कारगर है। तिल के गर्म तेल से गर्दन की हल्की मालिश 5 से 10 मिनट तक करें, फिर वहां गर्म पानी की पट्टी डालें, काफी आराम मिलेगा और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।


और भी हैं कई टिप्स (Some more tips)
1 .सुबह शाम भोजन के बाद थोड़ी मात्रा में हरीताकी खाएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ कम होगी।
2 .शारीरिक श्रम कम करें या इससे परहेज ही कर लें। भारी सामान एकदम नहीं उठाएं
3 .रात में चैन की नींद सोने का प्रयास करें।
4 .हमेशा हल्के और मुलायम तकिए पर सोएं, तकिए को बदलें नहीं।
5 .सही पोस्चर में बैठे और खड़ा रहें।
6 .तला-भुना और मसालेदार खानों से परहेज करें।
7 .सलाद और हरी सब्जी का सेवन ज्यादा करें।
8 .शराब और धूम्रपान को बाय-बाय करें
9 .प्रोटीन, विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस जिसमें ज्यादा हो वैसे ही भोजन करें।



भुजंगासन या कोबरा पोज


जैसा कि नाम से पता चलता है, भुजंगासन यानि भुजंग (सांप) जैसा आसंन । भुजंगासन में, आप पहले पेट के बल लेटकर सर को उठाएंगे और कंधो के सपोर्ट के लिए हाथ को जमीन पर रखेंगे। गर्दन को खींच कर पहले ऊपर की तरफ देखेंगे और धीरे धीरे पीछे की तरफ खींचने की कोशिश करेंगे । ये आसन आखिरी स्थिति में फन उठाये हुए नाग की तरह होता है ।


उष्ट्रासन या कैमल पोज


उष्ट्रासन काफी जटिल आसन है और इसे एहतियात के साथ किया जाना चाहिए। इसमें आप पहले घुटने के बल खड़े होकर गर्दन को पीछे की तरफ खींचते हैं । सपोर्ट के लिए हाथ से पैरों को पकड़ते हैं ।गर्दन के दर्द से राहत के लिए इस योग आसन को काफी कारगर माना जाता हैं ।यह आसन रेगिस्तान में ऊंट के विश्राम करने के मुद्रा से काफी मिलता जुलता हैं इसलिए इसे उष्ट्रासन कहा जाता हैं ।


सूर्य नमस्कार


सूर्य नमस्कार बहुत आसान लग सकता है और इसलिए अक्सर उपेक्षित रहता है। लेकिन सच तो ये है कि इससे अच्छा कोई पूर्ण व्यायाम नहीं है। हमारे पूर्वज हमेशा सुबह की शुरुआत सूर्य नमस्कार के साथ किया करते थे । वैज्ञानिको के अनुसार इस सरल योग अभ्यास से शरीर सूर्य के लिए उजागर होता है और उन सभी अतिरिक्त तरल पदार्थ का वाष्पीकरण होता है जो सूजन का कारण बनते हैं ।


मत्स्यासन या मछली आसन


मछली आसन गर्दन के पिछले भाग को मजबूत बनाने में मदद करता है और मत्स्यासनके नाम से जाना जाता है। इस आसन में पहले आप आलथी पालथी या पद्मासनं लगा कर बैठते हैं और पीठ के बल लेट जाते हैं ।अपनी पीठ और फर्श के बीच एक मामूली अंतर को छोड़कर गर्दन को पूरी तरह से पीछे खींच कर सर के उच्चतम बिंदु से फर्श को छूने की कोशिश करते हैं। इस आसन से सिर के अतिरिक्त तरल पदार्थ खुद को संतुलित करते हैं गर्दन के दर्द से राहत मिलती हैं ।


मकरासन या मगरमच्छ पोज


मकरासन में आप एक मगरमच्छ की तरह अच्छी तरह से आराम करने के मुद्रा में लेटते हैं । अपने पेट पर लेटकर हाथों से अपने गाल का समर्थन करते हुए अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को उठाते हैं । इस योग आसन से मांसपेशियों को खींच कर पेशीय-कंकाल प्रणाली पर सीधा प्रभाव पड़ता है ।


नौकासन या नाव आसन


नौकासन में आप अपने दोनों पैरों को एक साथ एक ऊपर की दिशा में उठा कर हाथ से पैरो के अंगूठो को पकड़ते हैं । यह नाव मुद्रा गर्दन दर्द निवारण में काफी सहायक है ।


इसके अलावा नियमित रूप से प्राणायाम जिसमे कपालभाति अनुलोमविलोम एवं भ्रामरी उदगीत धीमी गति से करने से बहुत लाभ होता है और आप काफी हद तक इस बीमारी से निजाद पा सकते है



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