पानी की बूँद-बूँद संजोने के जुनून ने बना दिया ‘शंकराचार्य’




1. तीन करोड़ लीटर वर्षाजल से रिचार्ज किया भूजल
2. इन्दिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार 2006 तथा भूजल संवर्धन पुरस्कार- 2008 एँड नेशनल वाटर अवार्ड के लिये नोमिनेट
3. 30 जिलों में रही गौशाला प्रथम


.आम आदमी को पीने के पानी की किल्लत से निजात दिलाने को घर से बेघर हुए लोगों की उपेक्षा और तानों को नजरअन्दाज कर एक युवा ने जुनून की हद पार करते हुए 3 करोड़ लीटर वर्षाजल से भूजल को समृद्ध कर दिया और बन गया मध्य प्रदेश राज्य का युवा पर्यावरण का ‘शंकराचार्य’।


छतरपुर जनपद के हमा गाँव में जन्मे बालेन्दु शुक्ल ने अर्थशास्त्र से एम.ए. करने के बाद पुलिस सेवा में जाने की तैयारी करना प्रारम्भ कर दी। यहाँ तक कि उन्होंने प्री भी कम्प्लीट कर लिया था। लेकिन अचानक एक दिन एक राहगीर कुत्ता किसी वाहन की टक्कर से घायल हो गया।


आस-पास के लोग उस पर पानी डाल रहे थे कि वह किसी तरह यहाँ से भाग जाये उन्हें डर था कि वो उनकी दुकान के आगे न मर जाय। यह देख बालेन्दु उस कुत्ते को अपने घर उठा लाये और उसकी सेवा करने लगे। वह कुत्ता तीन माह के अथक प्रयास से स्वस्थ हो गया। बस यहीं से उनकी मनोदशा बदल गई कहीं कोई बीमार जानवर दिखा उसको ले आए और उसकी सेवा करने लगे।


छतरपुर तथा आसपास के गाँव में पीने के पानी की वर्षों से कमी को देखते हुए पर्यावरण से लगाव रखने वाले बालेन्दु ने पर्यावरण पर भी काम करना शुरू कर दिया। अब बालेन्दु को इन कामों में आनन्द आने लगा और उनका दिन-रात इसी में व्यतीत होने लगा कि कैसे पर्यावरण को ठीक किया जाय जिससे पीने के पानी के साथ ही किसानों के खेतों की समस्या से निजात मिले।


वर्ष 2002 में उन्होंने मित्रों के सहयोग से पर्यावरण संरक्षण संघ संस्था का गठन किया। इसी संस्था के बैनर तले उन्होंने वर्षाजल संरक्षण का कार्य प्रारम्भ किया। छतरपुर शहर में उन्होंने घरों को रेनवाटर हार्वेस्टिंग उपकरण से लैस करना प्रारम्भ किया और चार वर्षों की अथक प्रयास कर उन्होंने 3 करोड़ लीटर पानी को संरक्षित कर भूजल को समृद्ध कर दिया। उनकी मेहनत और जुनून को देखते हुए मप्र. सरकार ने उन्हें वर्ष 2006 में पर्यावरण क्षेत्र में मिलने वाला राज्य स्तरीय ‘शंकराचार्य’ सम्मान तथा 50 हजार रुपए पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया।


अभी तक वह 1120 घरों को रेनवाटर हार्वेस्टिंग तकनीक से युक्त कर चुके हैं 138 घरों को रिचार्ज करने की योजना को मूर्तरूप देने की पक्रिया में हैं। वर्ष-2006 में राष्ट्रीय इन्दिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार तथा वर्ष 2008 में राष्ट्रीय भूजल संवर्धन पुरस्कार एंड नेशनल वाटर अवार्ड के लिये नोमिनेट हो चुके हैं।


वर्ष 2004 में घर से बेघर होने के बाद मित्रों की सहायता से एक हेक्टेयर जमीन ली जिस पर 2004 में ही एक गौशाला ‘अहिंसा गौशाला विकास संस्थान’ की आधारशिला रखी। गौशाला के साथ ही खेती के नए तरीके, जैविक खेती, कम पानी में खेती ‘मल्चिंग तकनीक’ का प्रयोग शुरू किया। एक हेक्टेयर जमीन के अन्दर एक कुआँ था जो पूरी तरह से सूखा हुआ था उसे रिचार्ज कर उबार लिया।


आज अपनी खेती की सिंचाई तो उस कुएँ के पानी से करते ही हैं आस-पास की 10 हेक्टेयर खेती को भी पानी देकर इस शर्त पर सींच रहे हैं कि वह उनके खेतों को पानी देंगे और उसके बदले में वो उन्हें उनकी गौशाला की गायों के लिये भूसा देंगे।


बालेन्दु ने अपने खेत पर गोबर गैस प्लांट लगा रखा है जिससे वह ईंधन का काम तो लेते ही हैं साथ ही उससे निकलने वाले गोबर का प्रयोग खाद के रूप में भी करते हैं। उनकी गौशाला को 30 जिलों की गौशालाओं में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। मप्र. सरकार ने उनकी संस्था को गौशाला के लिये 11 एकड़ जमीन दी है।


बालेन्दु की जुबानी उनकी कहानी


सिविल सर्विस में न जाने, पर्यावरण तथा जानवरों के सेवा भाव का घर में विरोध किया जाने लगा लेकिन मुझे जुनून सवार था सो मैंने किसी की नहीं सुनी। एक दिन जब मैं शाम को घर लौटकर आया तो देखा कि मेरा सारा सामान घर के चबूतरे पर बाहर रखा हुआ था। मैंने अपनी अम्मा से पूछा, ‘काये अम्मा का घर में पुताई हो रई, हमाओ सामान बाहर काये रखो’ अम्मा ने कहा, ‘नई पुताई नई हो रई पिता जी से बात कर लो वे तुमसे गुस्सा हैं’ जब पिता जी से बात करने गए तो उन्होंने कहा ‘का है जा गैया के मूत में’ ‘हमाये घर में तुमाये लाने जगा नैया’ ‘सो अपनो ठिकानों कऊ और ढूँढ़ लो’। मैं समझ गया मुझे घर से निकल दिया गया है। तब मैंने अपना सामान समेटा और अपने मित्रों के घर रहने लगा। उसके बाद मित्रों ने सहायता की तब एक हेक्टेयर जमीन पर गौशाला तथा खेत तैयार किया। घर में भाई की शादी में भी नहीं बुलाया गया। गाँव के लोग ही नहीं घर के लोग भी पागल कहते हैं। मैं गौ मूत्र तथा देशी जड़ी-बूटियों तमाम असाध्य रोगों का भी मुफ्त इलाज करता हूँ। रोगियों में मेरे कई रोगी विदेशी भी हैं। जो कई दिन रुककर अपना इलाज करवाते हैं।


जब मुझे ‘शंकराचार्य’ पुरस्कार का सम्मान दिया जा रहा था मंच पर मध्य प्रदेश के पर्यावरण मंत्री मेरे पिता जी के मित्र ने मुझे घर के नाम से बुलाया आयर कहा पप्पू तुम्हारे पिता जी कहाँ हैं मैंने उनको जवाब दिया वो नाराज हैं मुझसे। उन्होंने पूछा क्यों जब उनको बताया कि मैं पर्यावरण और गायों पर काम करता हूँ इसी वजह से। उन्होंने अपने मित्र तथा मेरे पिता के लिये कहा कि अजीब आदमी है लड़का इतना बढ़िया काम कर रहा है और वो नाराज है।


मुझे बाहर जितना सम्मान मिला घर में नहीं मिला। यह मलाल तो रहता ही है। अभी कुछ दिनों पूर्व पिता जी आये थे, यह देखने कि मैं करता क्या हूँ और कैसे गुजारा कर रहा हूँ। दस दिन रुक कर गए। उन्होंने मुझे नेकर पहने खेती किसानी पानी तथा देशी जड़ी-बूटियों में जूझते देखा और कहा कि वह घर चलें लेकिन मैंने कहा अब मेरा यही घर है इस घर में आपका स्वागत है जब तक रहना चाहें रहें। मैंने आजन्म शादी न करने का भी संकल्प लिया है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग की हेल्पलाइन भी मैंने प्रारम्भ की है। जिस पर अपने मोबाइल नम्बर 9827853750, तथा 9407300080 दिये हैं।


अब तक मिले पुरस्कार


राज्य स्तरीय शंकराचार्य सम्मान, जिला युवा पुरस्कार, छतरपुर गौरव सम्मान, जिला मास्टर ट्रेनर जलाभिषेक अभियान, सदस्य जिला जल विशेषज्ञ समिति, सदस्य माय सिटी – ग्रीन सिटी समिति, रेनवाटर हार्वेस्टिंग प्रशिक्षण के कई प्रमाण पत्र।


आगे की कार्य योजना


मध्य प्रदेश सरकार से मिली 11 हेक्टेयर जमीन को पेड़ों से आच्छादित कर पर्याप्त संख्या में गायों को रखना, एक तालाब खुदवाना, मेडिकेटेड पौधरोपित करना, किसानों को कम पानी में खेती के तरीके सिखाना, जैविक खेती के लिये किसानों को तैयार करना।



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